लोग चींटियों की तरह जमा थे वहां...
कोई कब किससे टकरा जाए कुछ पता नहीं...
जहाँ पाव रखने की जगह न थी...
वहां लोग रफ़्तार में नज़र आ रहे थे...
धरती में सब्जियों के ढेर लगे थे...
और हर ढेर पे ढेर सारे लोग खड़े थे...
कोई हाथ बढ़ा रहा था तो कोई पैसे ही...
कोई सब्जी की टोकरी तो कोई ऐसे ही...
गोल गोल कतार लगी थी हर तरफ़....
एक बात कोई कहे तो पता ही नहीं चलता था...
हर बात को ऊँची आवाज़ में कई बार बोलो...
तब कहीं जा कर कुछ बात बनती...
गैस के लैंप जल जल को उजाला कर रहे थे...
दूकान दार पसीने में लथ-पथ तोलने में लगा था...
कोई कोई तो उसके इमां पे शक कर बैठते...
उससे फ़िर से तोलने की जिद कर बैठते...
खरीदने और बेचने का दौर जारी रहा...
आज फ़िर हाट लगी कुबेरपुर में...
भावार्थ...
कोई कब किससे टकरा जाए कुछ पता नहीं...
जहाँ पाव रखने की जगह न थी...
वहां लोग रफ़्तार में नज़र आ रहे थे...
धरती में सब्जियों के ढेर लगे थे...
और हर ढेर पे ढेर सारे लोग खड़े थे...
कोई हाथ बढ़ा रहा था तो कोई पैसे ही...
कोई सब्जी की टोकरी तो कोई ऐसे ही...
गोल गोल कतार लगी थी हर तरफ़....
एक बात कोई कहे तो पता ही नहीं चलता था...
हर बात को ऊँची आवाज़ में कई बार बोलो...
तब कहीं जा कर कुछ बात बनती...
गैस के लैंप जल जल को उजाला कर रहे थे...
दूकान दार पसीने में लथ-पथ तोलने में लगा था...
कोई कोई तो उसके इमां पे शक कर बैठते...
उससे फ़िर से तोलने की जिद कर बैठते...
खरीदने और बेचने का दौर जारी रहा...
आज फ़िर हाट लगी कुबेरपुर में...
भावार्थ...
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