खामोशी के रास्ते वो मेरे पास आती है।
जो रहूँ भीड़ में तो मुझे तन्हाई रुलाती है।
मंजिल भी बदल देखी लोगो के कहने पे।
क्या करुँ हर सू में वोह ही नज़र आती है।
खुशबू उसकी हवाओ में घुल के बहती है।
और एहसास की बारिश मुझको भिगाती है।
वो कोई खाब हो तो उसको भूल भी जाऊं।
पर साँस है वोह चाह केर भी रुक न पाती है।
जिस्म के भीतर रूह है और मेरी रूह है वोह।
मिट भी जाए जिस्म तो ये रूह मिट न पाती है।
खामोशी के रास्ते वो मेरे पास आती है।
जो रहूँ भीड़ में तो मुझे तन्हाई रुलाती है।
भावार्थ...
2 comments:
खामोशी के रास्ते वो मेरे पास आती है।
जो रहूँ भीड़ में तो मुझे तन्हाई रुलाती है।
मंजिल भी बदल देखी लोगो के कहने
bahut sunder
Thanks a lot Manvinder ji !!!
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