गुरु के समक्ष रख दिया शिष्य ने एक प्रश्न।
पंचतत्व से हुआ कैसे ये शरीर उत्पन्न।
गुरु बोले, हवन से उत्पन्न हर तत्व जानो।
उसी हवन से हुआ शरीर उत्पन्न तुम मानो।
जो तत्व उस हवन से उत्पन्न होता जाता है।
वही अगले हवन की सामग्री बनता जाता है।
पाँच हवन का विदभत समावेश समझता हूँ।
उनसे फ़िर कैसे उत्पन्न हुई देह ये बतलता हूँ।
पहला हवन ऐसा जिसमें।
आकाश उसकी अग्नि है।
सूरज उसकी सामग्री।
किरने उसका धुआं हो जैसे।
दिन उसकी ज्योति।
चाँद उसकी धधकती लकड़ी।
और तारे उसके अंगारे।
इस हवन में 'शक्ति विश्वास की आहूति देता है।
इस हवन से फ़िर स्वयं राजा सोम निकलता है।
दूसरा हवन ऐसा जिसमें।
इन्द्र देवता अग्नि हैं।
और वायु उसकी सामग्री।
बादल उसका धुआं है।
बिजली उसकी ज्योति है।
कड़क है धधकती लकड़ी।
और गडगडाहट उसके अंगारे।
इस हवन में वो शक्ति सोम की आहूति देता है।
जिससे फ़िर वर्षा का जल धरती पे छलकता है।
तीसरा हवन ऐसा जिसमें।
ये प्रथ्वी अग्नि है
बीतते वर्ष उसकी सामग्री।
आकाश उसका धुआं है।
रात उसकी ज्योति है।
चार दिशाएं धधकती लकड़ी।
और बाकी दिशाएं अंगारे।
इस हवन में वो शक्ति वर्षा की आहूति देता है।
इस हवन से फ़िर इक अन्न स्वरूप जन्मता है।
चौथा हवन की जिसमें।
पुरूष एक अग्नि है।
उसकी आवाज़ उसकी सामग्री।
उसकी साँस हवन का धुआं।
उसकी जीभ ज्योति।
उसके आँख धधकती लकड़ी।
और कान उसके अंगारे।
इस हवन में वो शक्ति अन्न की आहूति देता है।
इस हवन से फ़िर एक बीज स्नायु में उपजता है।
पांचवा हवन ऐसा जिसमें।
स्त्री ख़ुद अग्नि है।
पुरूष लिंग उसकी सामग्री।
उनका मिलन जैसे धुआं सा है।
उसकी योनी एक ज्योति सी है।
काम ज्वाला धधकती लकड़ी है।
और काम पराकाष्ठा हैं अंगारे ।
इस हवन में वो शक्ति बीज की आहोती देता है।
इस हवन से फ़िर नश्वर शरीर उदगत होता है।
भावार्थ...
(प्रेरणा : छ्न्दोग्य उपनिषद )
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