हजारो ख्वाईशें ऐसी की हर ख्वाइश पे दम निकले।
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फ़िर भी कम निकले।
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का।
उसकी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले।
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पे।
वो खून जो चश्मे तर से उम्र भर दम-ब-दम निकले।
निकलना खूंद का आदम से सुनते आए हैं लेकिन।
बहुत आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले।
हुई जिनसे तवक्को खस्तगी की दाद पाने की।
वोह हमसे भी ज्यादा जी खास्ताय्गी-ऐ-सितम निकले।
कहाँ माय खाना का दरवाजा का और कहाँ वाईज।
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था की हम निकले।
हजारो ख्वाईशें ऐसी की हर ख्वाइश पे दम निकले।
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फ़िर भी कम निकले।
मिर्जा गालिब...
2 comments:
YAH GAZAL PADHANE KA DHANYAWAD.
Thanks a Lot for posting such a touching ghazals.
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