Saturday, September 6, 2008

उस रोज !!!

उस रोज !!!
सूरज भी मद्धम था।
हवा भी रुकी रुकी सी थी।
हर लम्हा सालो सा बीत रहा था।

उस रोज !!!
चाँद भी फीका था।
तारे भी गुमसुम से थे।
हर नज़ारा बुझा बुझा सा था।

उस रोज !!!
शरारते चुपचाप थी।
छेड़-खानी कहीं न थी।
झूट-मूट का गुस्सा खामोश था।

उस रोज !!!
वो नज़र आई न थी।
आंसू की नदी रुक पायी न थी।
दिल मेरा उसकी याद से क्यों भर आया था।

उस रोज !!!
वो याद आई थी।
उसकी हर बात याद आई थी।
प्यार की हर एक सौगात याद आई थी।

उस रोज !!! मुझे...

भावार्थ
...

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