ये न थी हमारी किस्मत की विसाल-ऐ-यार होता।
अगर जीते रहते तो ये ही इंतज़ार होता।
तेरे वादे पर जीए हम तो ये जान झूठ जाना।
की खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-ऐ-नीम कसक।
यह खलिश कहाँ से होती जो ये जिगर के पार होता।
रगे संग से टपकता जो लहू फ़िर न थमता।
जिसे गम समझ रहे हो ये अगर शरार होता।
कहूँ किससे में की क्या है सब-ऐ-गम बुरी बला है।
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।
हुए मर के हम जो रुसवा हुए क्यों न गर्क दरिया।
न कभी जनाजा उठता न कहीं मजार होता।
उसे कौन देख सकता कि न यगा है न यकता।
जो दुही की बू जो होती तो कहीं दो-चार होता।
ये मसले तस्सवुफ़ ये तेरा बयान गालिब।
तुझे हम बलि समझते जो न वादा खार होता।
ये न थी हमारी किस्मत की विसाल-ऐ-यार होता।
अगर जीते रहते तो ये ही इंतज़ार होता।
मिर्जा ग़ालिब...
2 comments:
Can u post the meaning of this ghazal?
Meaning kya h
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