कब से मेरी कोई भी ग़ज़ल खिलखिलाई न थी।
सोच की स्याही हर्फ़ बनके यू मुस्कुरायी न थी।
चन्द ख्वाब भी आए भी तो तैरते फलक बनकर।
उनमें से वो अरमानो की घटा बरस पायी न थी।
मेरे हर एक रिश्ते का तोहफा तो बस हिज्र था।
किसीको अपनाने की तमन्ना मचल पायी न थी।
जो तुम आए तो लगा जिंदगी मेहरबान हो गई ।
उस रोज मौत अपनी आंधी को रोक पायी न थी।
भावार्थ...
2 comments:
मेरे हर एक रिश्ते का तोहफा तो बस हिज्र था।
किसीको अपनाने की तमन्ना मचल पायी न थी।
जो तुम आए तो लगा जिंदगी मेहरबान हो गई ।
उस रोज मौत अपनी आंधी को रोक पायी न थी।
bahut khub likha hai ...
thnx anwar...
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