एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, August 23, 2015
कुछ शाख दरख्तो पे ऐसी
कुछ शाख दरख्तो पे ऐसी
जो हैं मगर बेजान है सब
न फूलों की मदहोशी रही
न हरियाली का निशाँ है अब
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