Saturday, September 6, 2008

कोई उम्मीद भर नहीं आती !!! मिर्जा गालिब...

कोई उम्मीद भर नहीं आती।
कोई सूरत नज़र नहीं आती।

मौत का एक दिन मुआयल है।
नींद क्यों रात भर नहीं आती।

आती थी हाल-ऐ-दिल पे हसी।
अब किसी बात पर नहीं आती।

जानता हूँ सबा बिता तो जुहूद।
पर तबियत इधर नहीं आती।

हम वहां है जहाँ से हमको भी।
कुछ हमारी खबर नहीं आती।

मरते हैं आरजू में मरने की।
मौत आती है पर नहीं आती।

है ऐसी सी कुछ बात की छुप हूँ।
वरना क्या बात कर नहीं नाती।

काबे किस मुँह से जाऊगे गालिब।
शर्म तुमको मगर नहीं आती।

कोई उम्मीद भर नहीं आती।
कोई सूरत नज़र नहीं आती।

मिर्जा गालिब...

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