Saturday, March 28, 2015


दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर  गयी 
दोनों को इक ही  अदा में रज़ामंद कर गयी 

शक हो गया है सीना खुश लज़्ज़त -इ-फराज 
तकलीफ-इ-पर्दादारी-ए ज़ख्म-ए-जिगर गयी 


वो बड़ा-ए-शबाना की सरमस्तियां कहाँ है 
उठिए बस अब तक लज़्ज़त-ए- खाब-इ शहर गयी 

उड़ती फिर है ख़ाक मेरी कु-ए-यार में 
बारे अब ए  हवा हवस-ए बाल-ओ-पार गयी 

देखो तो ये दिल फरेबी-ए- अंदाज़-ए -नक्श-ए -पा 
मौज-ए-खिरम-ए-यार भी क्या गुल कुतर गयी 


हर बुला हवस ने हुस्न परस्ती शिअर की 
अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गयी 

नज़र ने भी काम किया बन  नक़ाब का 
मस्ती से हर निगाह तेरे रुख पर बिखर गयी 

फ़र्दा-ओ-दिन का तफर्रुका एक मर मिट गया 
कल तुम गयी की हम पे क़यामत गुज़र गयी 

मार  ज़माने ने असद उल्लाह खान  तुम्हें 
वो वाल-वले कहाँ वो जवानी किधर गयी 

मिर्ज़ा ग़ालिब !!!



घर अपने काशी शिव आएं

घर अपने काशी  शिव आएं
भक्त अभिलाषी शिव आएं

जर्जर घाट पे बहती मैया 
इसमें चलती निर्जर नैया 
मेरे धर्म का कौन खिवैया
गंगा के निवासी शिव आएं
घर अपने काशी शिव आएं

भक्त अभिलाषी शिव आएं
घर अपने काशी  शिव आएं

दृष्टि युक्त अँधा संसार
आडम्बर का होता व्यपार
पाप का सर पे है अम्बार
सब संकट नाशी शिव आएं
घर अपने काशी शिव आएं

भक्त अभिलाषी शिव आएं
घर अपने काशी  शिव आएं


भावार्थ
२९/०३/२०१५






Wednesday, March 25, 2015

मुफलिसी कहीं मजहब न बन जाए

मुफलिसी कहीं मजहब न बन जाए
नोट कागज़ का कहीं रब न बन जाए

जरा संभाल ये शौक जो तेरी आदत है
ये आदत तेरी कहीं तलब न बन जाए

जेहेन में होश रहे  जब तू मदहोश रहे 
वो लफ्ज़ तेरी मौत का सबब न बन जाए

भावार्थ
२५/०३/२०१५









Sunday, March 22, 2015

तेरी आरज़ू बहुत है तेरा इंतज़ार कम है

तेरी आरज़ू बहुत है तेरा इंतज़ार कम  है
ये वो हादसा है जिस पे मेरा इख्तियार कम है

ये हवादसे जमाना बड़ी दूर ले गए हैं
मुझे अपनी जिंदगी से ये नहीं कि प्यार कम  है

ये बुझे बुझे से सागर ये उदास उदास शीशे
तेरे मयकदे में साकी कोई वादाखार कम है

मैं वसीम शेर कहने के लिए तरस रहा हूँ
कई दिन से आँख मेरी इधर अश्कबार कम है

वसीम बरेलवी 

चित पट का नहीं खेल जिंदगी

चित पट का नहीं खेल जिंदगी
मत खेल जुआरी बन के तू

हर सांस तेरी एक लम्हा है
जी आज़ाद परिंदा बन के तू

अवसाद बड़ा इक  दरिया है
पार है जाना तो थम जा  तू

भावार्थ 

मैं तेरी आँख में आंसू की तरह रहता हूँ

मैं तेरी आँख में आंसू की तरह रहता हूँ
जलते बुझते  जुगनू की तरह रहता हूँ

सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं भी इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूँ

हसन काज़मी !!!

तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये खबर गयी

तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये खबर गयी
की तेरे ही शहर की शायरा तेरे इंतज़ार में मर  गयी

कोई बात थी कोई था सबब जो मैं वादा  मुकर गयी
तेरे प्यार पर तो यकीन था मैं खुद अपने आप से डर गयी

वो तेरे मिज़ाज़  बात थी ये मेरे मिज़ाज़ की बात है
तू मेरी नज़र से न गिर सका मैं तेरी नज़र से उत्तर गयी

है खुद गवाह तेरे बिना  मेरी ज़िन्दगी तो न कट  सकी
मुझे ये बता कि मेरे बिना  उमर  तेरी कैसे गुज़र गयी

वो सफर को अपने तमाम कर गयी रात आएंगे लौटकर
ये नसीम मैंने सुनी खबर तो मैं शाम से ही संवर गयी

मुमताज़ नसीम !!!












Saturday, March 21, 2015

लाल रक्त चहुँ ओर

लाल रक्त चहुँ ओर
भय लिप्त ह्रदय घनघोर

संग से कदम
क्रोध है विषम
निर्जर आत्मा
ढूढे दैत्य हर ओर
लाल रक्त चहुँ ओर

गंध में पुटाश
दृश्य में है लाश
नृदयी  देवता
पाप में सरावोर
लाल रक्त चहुँ ओर

नीर में विष भरा
नृत्य करती धरा
शिव की कामना
प्रकृति करे पुरजोर
लाल रक्त चहुँ ओर

लाल रक्त चहुँ ओर
भय लिप्त ह्रदय घनघोर

भावार्थ
२२/०३/२०१५ 

घोंसले तोड़ जहाँ आशियाने बने




ऐसी जगह कोई कैसे खुशियां चुने
घोंसले तोड़ जहाँ  आशियाने बने

कोयलों की कूक यहाँ गढ़ गयी
भीड़ की ये चीख देखो बढ़ गयी

बेसुरे साज से कोई सुर कैसे बने
घोंसले तोड़ जहाँ  आशियाने बने

मोर के नृत्य करते हमको बिभोर
इन पत्थरो में पनपे  कुकृत्य घोर

बिखरे कांच से आईना कैसे बने
घोंसले तोड़ जहाँ  आशियाने बने

यहाँ काग का अपना ही राग था
फूलों का कलयिों का एक बाग़ था

बंजर जमीन में  बीज कैसे जने 
चोसले तोड़ जहाँ आशियाने बने

ऐसी जगह कोई कैसे खुशियां चुने
घोंसले तोड़ जहाँ  आशियाने बने

भावार्थ

Tuesday, March 3, 2015

हो जाऊं चुप जो अगर लफ्ज़ बयाँ हो जाएं

हो जाऊं जो खामोश अगर ये लफ्ज़ बयाँ हो जाएँ
हँस लूँ जरा जो तेरे संग तो ये अश्क़ बयाँ हो जाएं

चलता रहूँ तो छाले  मेरे चुभते  नहीं  मुझको
थम जो जाऊं अगर तो मेरे  दर्द बयाँ हो जाएं

जब तक हैं अजनबी हम तो मोहब्बत जिन्दा है
नज़रो से मिल गयीं जो नज़र तो इश्क़ बयाँ हो जाएं

तनहा हूँ तो महफूज है मेरी जिंदगानी की ये किताब
घुल मिल जाऊं जो दुनिया में इसके हर्फ़ बयाँ  हो जाएँ

हो जाऊं जो खामोश अगर ये लफ्ज़ बयाँ हो जाएँ
हँस लूँ जरा जो तेरे संग तो ये अश्क़ बयाँ हो जाएं


भावार्थ