दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी
दोनों को इक ही अदा में रज़ामंद कर गयी
शक हो गया है सीना खुश लज़्ज़त -इ-फराज
तकलीफ-इ-पर्दादारी-ए ज़ख्म-ए-जिगर गयी
वो बड़ा-ए-शबाना की सरमस्तियां कहाँ है
उठिए बस अब तक लज़्ज़त-ए- खाब-इ शहर गयी
उड़ती फिर है ख़ाक मेरी कु-ए-यार में
बारे अब ए हवा हवस-ए बाल-ओ-पार गयी
देखो तो ये दिल फरेबी-ए- अंदाज़-ए -नक्श-ए -पा
मौज-ए-खिरम-ए-यार भी क्या गुल कुतर गयी
हर बुला हवस ने हुस्न परस्ती शिअर की
अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गयी
नज़र ने भी काम किया बन नक़ाब का
मस्ती से हर निगाह तेरे रुख पर बिखर गयी
फ़र्दा-ओ-दिन का तफर्रुका एक मर मिट गया
कल तुम गयी की हम पे क़यामत गुज़र गयी
मार ज़माने ने असद उल्लाह खान तुम्हें
वो वाल-वले कहाँ वो जवानी किधर गयी
मिर्ज़ा ग़ालिब !!!