Monday, January 2, 2012

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से... !!!

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से...
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

काठी को काया समझता रहा...
माटी को माया समझता रहा...
भीतर ही भीतर मैं फिरता रहा...
मैं हूँ गर बंजारा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से..
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

मैं तड़पता हूँ तो अपनी हर एक चाह में...
मैं डरता हूँ तो मन की हर अँधेरी गाह  में...
मैं बहकता हूँ तो तमन्नाओ की  राह में...
में हूँ गर आवारा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से..
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

मैं वो नहीं जो मैं मानता हूँ...
सच वो नहीं जो मैं जानता हूँ...
कुछ तो  है फिर जो मैं छानता हूँ...
मैं हूँ गर दूर जा रहा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से...
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

भावार्थ...

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