ये उम्मीद न थी...
कि वो नहीं आयेगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
जो कभी मुस्कुराने का सबब थी...
जो कभी खुदा थी कभी रब थी...
जिसकी मोहब्बत मेरा पैरहन थी...
जो मेरी निखत मेरी अंजुमन थी...
जिसने मिलने को कभी मीलो कि दूरियां तय की थी...
दुनिया कि तोहमतें और मजबूरियां तय की थी...
कदम कुछ न चल पाएगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो नहीं आयेगी...
मुझे उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
मुझे उम्मीद न थी...
भावार्थ...
कि वो नहीं आयेगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
जो कभी मुस्कुराने का सबब थी...
जो कभी खुदा थी कभी रब थी...
जिसकी मोहब्बत मेरा पैरहन थी...
जो मेरी निखत मेरी अंजुमन थी...
जिसने मिलने को कभी मीलो कि दूरियां तय की थी...
दुनिया कि तोहमतें और मजबूरियां तय की थी...
कदम कुछ न चल पाएगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो नहीं आयेगी...
मुझे उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
मुझे उम्मीद न थी...
भावार्थ...
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