इश्क मुझको नहीं, वेह्शत ही सही
मेरी वेह्शत तेरी शोहरत ही सही
कट्टा कीजे न ताल्लुक हमसे
कुत्च नहीं है तो अदावत ही सही
मेरे होने में है क्या रुसवाई
ऐ वेह मजलिस नहीं खल्लत ही सही
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
गैर को तुझसे मोहब्बत ही सही
अपनी हस्ती हे से हो जो कुछ हो
आगाही गर नहीं गफलत ही सही
उम्र हरचंद की है बर्के-खरं
दिल के खून की फुर्सत ही सही
हम कोई तरके-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क मुसीबत ही सही
कुछ तो दे ऐ फाल्के-न-इन्साफ
आहो फरियाद की रुखसत ही सही
हम भी तस्लीम की खू डालेंगे
बेनयाज़ी तेरी आदत ही सही
यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही
..मिर्जा गालिब
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