एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, June 2, 2009
जनवरी आ गई !!!
आसमान गिर गया आख़िर ... अब्र मेरे पार्क में आ ठहर गए हैं ... सूरज को मौत दे दी शायद ... लैंपपोस्ट रौशनी के घर बन गए हैं ...
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