मेरी इस दोस्ती को वो मोहब्बत समझ बैठे...
मेरे अफसानो को वो हकीकत समझ बैठे...
मुझे तो युही बस हसने-हसाने की आदत है...
मेरी इस दिल्लगी को वो शरारत समझ बैठे...
मेरी नज़रें झुकी रहकर एहतराम करती है ...
मेरे इन सजदों को वो इबादत समझ बैठे...
उनकी बातों को मैंने कभी दिल से लगाया नहीं...
मेरा दिल दुखाने की इसे वो इजाज़त समझ बैठे...
मुझे खुदा ने दुखो को सुनने का जो दिया है हुनर...
संजीदगी को वो दिल बहलाने की आदत समझ बैठे...
भावार्थ...
1 comment:
चलिए हम भी इसे सफ़ाई समझ बैठे.
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