Tuesday, February 3, 2009

परवाज़ !!!

आज रंगों को परवाज़ नहीं मिलती...
खिल के रह जाते है सतरंगी कागज़...
खरीददार आए और चले गए बाज़ार से...
धागे से जुड़े रंग जब उड़ान भरते हैं...
तो कायनात सिमट जाती है नजरो में...
अरमान निकल पड़ते हैं रंगों के साथ...
फ़िर खीचता कोई छोड़ता कोई धागे को....
और रंगों को आसमान तैरता देखता...
लेकिन बीत गया वो रंगों की परवाज़ का दौर...
कागज़ रद्दी बन गए ,साल बीत गए...
पर कोई नहीं आया रंग-बिरंगी पतंग लेने ...

...भावार्थ

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