शहर की जिंदगी देख पता चलता है।
दूर कहीं नरक की हालत कैसी होगी।
भीड़ जो बढ़ती है चाहे जिस तरफ़ देखो।
उसमे पनपती बैचेनी सोचो कैसे होगी।
ये धुआं हवा में हवा से कहीं ज्यादा है।
हर पल जाती साँस की हालत क्या होगी।
बंद घरो में घुटते बच्चो का तो सोचो।
विश्व भविष्य नस्ल न जाने कैसी होगी।
समय है पैसा, और पैसा है सबसे उपर।
सोचो ऐसे में रिश्तो की दशा क्या होगी।
बादल बरसे न बरसे पर गमगीन शमा है।
खुशी को तरसी कॉम की हालत क्या होगी।
ये उदासी, ये गमी , ये दुःख और ये बैचैनी।
दूर कहीं नरक की हालत कैसी होगी।
भावार्थ...
3 comments:
one of the best poems i have ever read :-)
ashutosh
Thanks Ashu !!!
yahi narak hai ,kahin jaane aavshyakataa nahi hai .
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