अरमानों ने खोयी आवाज की जिद की है।
ख्वाबो ने ख़ुद की परवरिश की जिद की है।
कितना गम रहा होगा उसके सीने में।
समंदर ने भी आज डूबने की जिद की है।
इतना रुलाया उसको अपनों ने जहाँ में।
रिश्तो ने अजनबी बनने की जिद की है।
डर गया खुदा भी कॉम का खून देख कर।
उसने ख़ुद को बुत में बदलने की जिद की है।
रात की कमर झुक गई लोगो ढोते ढोते।
उसने चांदनी को मिटने की जिद की है।
कोई तो हो जो होसला दे जिंदगी का दोस्त।
वरना साँसों ने ख़ुद को रोकने की जिद की है।
भावार्थ....
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, May 4, 2008
ख्वाबो ने ख़ुद की परवरिश की जिद की है !!!
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2 comments:
kya taareef karon ? bahut hi khobsurat rachana hai .
It is another my favs...thanks for reading !!!
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