Tuesday, May 27, 2008

गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है !!!

गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।
ये इंसान न जाने कौन से रास्ते जा रहा है।

कुछ लम्हे कहना कुछ पल सुनना किसी को।
शयद आज सबसे मुश्किल होता जा रहा है।

फुरसत जैसे गुम हो गई है तेजी की भीड़ में।
अब रुकने का नाम भी नहीं लिया जा रहा है।

लोरी, किस्से और गप्प के कहकहे ढेर हो गए।
और बक बक का नामो निशान मिटता जा रहा है।

सिसकती बातो को सुनना पाप है शायद आज ।
और गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।

भावार्थ...

3 comments:

Anonymous said...

this poem is the reflection of today'world....where people have no time for sharing good and happy time with not only their friends but also their family members.Emotions and sentiments costs nothing but today time is most precious!great going!

Ajay Kumar Singh said...

Thanks a lot Bhabhi !!! But this is wht I believe....and I wish ppl talk and share their hearts out..so that we can happily amid our belovedm ones...

Renu Sharma said...

aaj log rupaye se guftgoo karne ke liye uska peechha kar rahen hain , to insan ki baat kaise sunenge .