आज जब मेरे रिश्तो की इमारत डगमगायी।
मुझे रह रह कर वाफाओ की नींव याद आई।
न जाने कौन सा सामान रख छोडा था मैंने।
मेरी यादो की हर ईंट ने रो रो कर दी है दुहाई।
क्यों मैंने कभी कसक की खिड़की नहीं खोली।
वही से बेवफाई की सिली हवा है भीतर आई।
हर खुशी का दरवाजा शक के दीमक से है टुटा।
तभी तो खुशी की सौगात यहाँ नहीं बिखर पायी।
एहसासों का गारा भी झड़ झड़ गिरता है कौनो से।
अश्क की सीलन है जैसे दिल की छत पे है छाई।
मैंने जब प्यार का सामान ही नहीं बटोरा घर में।
तभी तो मेरे आगोश में लौट कर आई है तन्हाई।
भावार्थ...
2 comments:
sundar abhivyakti hai .
thanks...It is one of my fav poems...thanks for commenting...
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