गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।
ये इंसान न जाने कौन से रास्ते जा रहा है।
कुछ लम्हे कहना कुछ पल सुनना किसी को।
शयद आज सबसे मुश्किल होता जा रहा है।
फुरसत जैसे गुम हो गई है तेजी की भीड़ में।
अब रुकने का नाम भी नहीं लिया जा रहा है।
लोरी, किस्से और गप्प के कहकहे ढेर हो गए।
और बक बक का नामो निशान मिटता जा रहा है।
सिसकती बातो को सुनना पाप है शायद आज ।
और गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।
भावार्थ...