Sunday, January 1, 2012

जब लाद चलेगा बंजारा...

तू खिर्स-ओ-हवस को छोड़ मियाँ...
मत देश-प-देश फिरे मारा...
कजाक अज़ल का लूटे है...
दिन रात बजा कर नक्कारा...
क्या बधिया भैसा बैल सुतर....
क्या गोई पल्ला सर फारा...
क्या गेहूं चावल मोठ मटर...
क्या आग धुआं क्या अंगारा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


गर तू है लख्खी बंजारा...
और खेप भी तेरी भारी है...
ए गाफिल तुह्झ्से भी चढ़ता...
एक और बड़ा व्यापारी है...
क्या शक्कर मिश्री कंद गिरी...
क्या साम्भर मीठा खारी है...
क्या दाख मुन्न्क्का सोठ मिर्च...
क्या केसर  लॉन्ग सुपारी है...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


ये बधिया लादे बैल भरे...
जो पूरब पश्चिम जावेगा...
या सूद बढ़ा के लावेगा...
या टोटा घाटा पावेगा...
कजाक अज़ल का रस्ते में...
जब भाला मार गिरावेगा..
धन दौलत नाती पोता क्या...
एक कुम्भा काम न आवेगा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


हर मंजिल में अब साथ तेरे...
ये जिनिया डेरा डाला है..
जर दरम दीनार का भांडा है...
बन्दूक से पर और खांडा है...
जब नायक तन का निकल गया...
वो मुल्को मुकों बांडा है...
फिर हांडा है न भांडा है...
हलवा है न मांडा है...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


जब चलते चलते रस्ते में...
ये गौण तेरी ढल जायेगी...
एक बधिया तेरी मिटटी पे...
एक घास न चरने आवेगी...
ये खेप जो तुने लादी है...
सब हिस्सों में बाँट जावेगी...
धी पुत जमाई बेटा क्या....
बंजारन पास ना आवेगी...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


ये खेप भरे जो जाता है...
ये खेत मियाँ मत गिन अपनी...
ये कौन घडी किस हाल में...
ये खेप है बस खपनी...
क्या थाल कटोरे चांदी के..
क्या पीतल की डिबिया ढपनी..
क्या बर्तन सोने रोपये के...
क्या मिटटी की हंडिया चपनी...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...

जब लाद चलेगा बंजारा...


कुछ काम न आवेगा तेरे...
ये लाल जमूरत सीमो जर...
जब पूजी बात में बिखरेगी...
फिर आन बनेगी जान ऊपर...
नकारे नौबत बाण निशाँ...
दौलत हज्मत फौजे लश्कर...
क्या मशंत तकिया मिल्क मकान...
क्या चौकी कुर्सी तख़्त छप्पर...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


क्यों जी पर बोझ उठाता है...
इन गौनो भारी भारी के...
जब मौत का डेरा आन पडा...
फिर दुने हैं व्यापारी के...
क्या साज सजाओ जर जेवर...
क्या गोटे ठान किनारी के...
क्या गोदे जींद सुनहरी के...
क्या हाथी लाल अमारी के...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


मगरूर न हो तलवारों पर...
मत फूल भरोसे ढालों के...
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे...
मूह देख अज़ल के भालों के...
क्या डब्बे मोती हीरों के...
क्या ढेर खाजाने  मालों के...
क्या बुक्चे ताश मुसज्जर के...
क्या तख्ते शाल दुशालों के...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...




क्या सख्त मकान बनवाता हैं...
ख़म तेरे बदन का है पोला...
तू ऊँचे कोट उठाता है...
वहां घोर घने ने मूह खोला...
क्या रैनी खंदक रंग बड़े...
क्या बुर्ज कंगोरा अनमोला...
गढ़ रोल अकल्ला तोप कला...
क्या शीशा दारू और गोला...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


हर आन नफे और टोटे में...
क्यों मरता फिरता है बन बन...
टुक काफ़िल दिल में सोच जरा...
साथ लगा तेरे दुश्मन....
क्या लौंडी बंदी दाई दवा...
क्या बंद चेअल नेक चलन...
क्या मंदिर मस्जिद ताल कुए...
क्या घाट चरा क्या बाग़ चमन...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


जब मर्द फिर के चाबुक को...
ये बैल बदन का हाकेंगा...
कोई नाज़ समेटेगा तेरा...
कोई गौण सिये और टान्केगा....
हो ढेर अकेला जंगल में...
तू ख़ाक लहद की फांकेगा...
उस जंगल में फिर आख नजीर..
एक फुन्गा आन न झांकेगा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...

जब लाद चलेगा बंजारा...




नजीर अकबराबादी !!!

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