Wednesday, June 24, 2009

पहेली !!!

यु तो जिंदगी एक पहेली है...
मगर मैं फ़िर भी इसे सुलझाने निकल पड़ा...
जिंदगी एक राह सी है....
हार और जीत इसके दो पत्थर हैं...
जो बीच बीच मैं गढे हैं...
इंसान इनके बीच उम्मीद लिए फिरता रहता है...
अपनों से बंधा कभी जन्नत देखता है...
कभी उन्ही से खफा तनहा बैठता है...
बेगानों से यु तो उसे कोई मेल नहीं है...
पर दोस्त, हमसफ़र,राज दार उसे इन्ही मैं मिलते हैं...
अपने और बेगानों की दूरी सिर्फ़ जेहेन में है असल में नहीं...
पर फ़िर सोचता हूँ की इसमें सपने भी हैं,
चाहत भी है, कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी है...
तो ये जिंदगी इक राह भर नहीं है...
ये जिंदगी एक नाव है...
जो समय में तेरती रहती है...
समय एक ऐसा दरिया है जिसमें बहाव बढ़ता जाता है...
हिलोरे तो आती है जाती हैं, मगर बहाव धीमे धीमे...
उसे उसी दरिया में डुबो देता है जिसमें वो तैरने निकली होती है...
उसमें सवार उस जिंदगी के कई तिनके एक एक कर...
उस नाव को छोड़ देते हैं तो नए तिनके किनारों से निकल...
उसके साथ साथ बहने लगते हैं...
नाव पुराने तिनको को भूल नए तिनको से जुड़ जाती है...
भूलने और जुड़ने के दौर में कब वो डूब जाती है....
उसको ख़बर भी नहीं होती, बस एक मलाल होता है...
की ऐ काश !! वो तिनके जो उससे जुड़े थे उसके साथ ही रहे होते...
जिनको उसने अपना कहा उसके साथ ही बहे होते...
नाव को ये हकीकत भी सामने आई...
की हिलोरे एहसास हैं, हकीकत नहीं...
एहसास जो हमारे जेहेन में बुना जाता है...
एक लम्हे भर की जिंदगी है...
नाव है जिंदगी या फ़िर राह कोई नवेली है...
में हार गया जिंदगी आज भी एक पहेली है...

भावार्थ...

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