Monday, May 19, 2008

वो !!!

चार दीवारी ओढ़ के बैठी है।
हर आहट पे वो घबराती है।
लाज का बादल न छटता है।
हया की रिमझिम आ जाती है।

लाल होठ और लाल हैं मेहँदी।
लाल मांग और लाल है जोडा।
लाल हुई वह लाज से इतनी।
लाल हुआ मुख न उसने मोडा।

नाजुक कदम हैं उसके इतने।
पड़ते है जमी पे रो पड़ते हैं।
अंग है उसके छुई मुई के कोई।
हवा चले बस मुड़ पड़ते है।

सपनो की बुत है वो।
आशाओ का पैगाम हो कोई।
बहारों की बौछार है।
दुआओं का अंजाम हो कोई।

भावार्थ...

1 comment:

Renu Sharma said...

yahi sapanaa to sabse achchha hai .