Saturday, May 10, 2008

मुझे रह रह कर वाफाओ की नींव याद आई।

आज जब मेरे रिश्तो की इमारत डगमगायी।
मुझे रह रह कर वाफाओ की नींव याद आई।

न जाने कौन सा सामान रख छोडा था मैंने।
मेरी यादो की हर ईंट ने रो रो कर दी है दुहाई।

क्यों मैंने कभी कसक की खिड़की नहीं खोली।
वही से बेवफाई की सिली हवा है भीतर आई।














हर
खुशी का दरवाजा शक के दीमक से है टुटा।
तभी तो खुशी की सौगात यहाँ नहीं बिखर पायी।

एहसासों का गारा भी झड़ झड़ गिरता है कौनो से।
अश्क की सीलन है जैसे दिल की छत पे है छाई।

मैंने जब प्यार का सामान ही नहीं बटोरा घर में।
तभी तो मेरे आगोश में लौट कर आई है तन्हाई।

भावार्थ...

2 comments:

Renu Sharma said...

sundar abhivyakti hai .

Ajay Kumar Singh said...

thanks...It is one of my fav poems...thanks for commenting...