स्त्री होने के खातिर
धुआं, जलन और कालिख
भूख की खातिर
रस्म, रीति और रिवाज़
समाज की खातिर
सिन्दूर ,बिंदी और बिछिया
पति की खातिर
जेवर, साड़ी और हया
कुटुंब की खातिर
पैरहन ये सब के सब
अपने अक्स से लपेटे
अर्धनग्न कर दिए गए
अपने वजूद को समेटे
मैं जी रही हूँ
घुटन, दर्द और व्यथित
स्त्री होने के खातिर
भावार्थ
०५/०९/२०१५
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