एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, September 7, 2015
दर्द की हद
अपने दर्द की हद पे क्यूँ इतराती है तू मौत
तूने शायद कभी बेवफाई का दर्द नहीं देखा
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