एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, September 6, 2015
जुस्तजू की इन्तहा मत पूछ तू
जुस्तजू की इन्तहा मत पूछ तू
बस तू ही मेरा पैरहन हो जाए
किसको परवाह है आबरू की
जो तेरे इश्क़ में मगन हो जाए
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