एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...
उठकर मंजिल ही आये तो शायद कुछ हो...
शौक-ए-मंजिल तो मेरा अब रफा हो बैठा...
मसले हत छीन गयी कुव्वाते गुफ्तार मगर...
कुछ न कहना भी मेरी सजा हो बैठा...
शुक्रिया ए मेरे कातिल इ मसीहा मेरे...
जहर जो तुने दिया वो दवा हो बैठा...
एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...
एहशान दानिश...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...
उठकर मंजिल ही आये तो शायद कुछ हो...
शौक-ए-मंजिल तो मेरा अब रफा हो बैठा...
मसले हत छीन गयी कुव्वाते गुफ्तार मगर...
कुछ न कहना भी मेरी सजा हो बैठा...
शुक्रिया ए मेरे कातिल इ मसीहा मेरे...
जहर जो तुने दिया वो दवा हो बैठा...
एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...
एहशान दानिश...
No comments:
Post a Comment