ये वीराना भी कभी आबाद था...
हरे भरे गलियारों से...
घर के चौक दुवारो से...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
इस मैदान में बचपन बीता है...
यहाँ शोर चुपचाप आज भी जीता है...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
होली का रंग इंटो में आज भी लिपटा सा है...
दिए की लौ का धुआं कौने में चिपटा सा है...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
क्या हुआ जो आज बुजुर्ग नहीं रहे...
दुआ नहीं रही उनके तजुर्बे नहीं रहे...
इस कैमरे ने कैद कर ही लिया...
मैंने देखा तो दिल ने कह ही दिया...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
भावार्थ..
हरे भरे गलियारों से...
घर के चौक दुवारो से...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
इस मैदान में बचपन बीता है...
यहाँ शोर चुपचाप आज भी जीता है...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
होली का रंग इंटो में आज भी लिपटा सा है...
दिए की लौ का धुआं कौने में चिपटा सा है...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
क्या हुआ जो आज बुजुर्ग नहीं रहे...
दुआ नहीं रही उनके तजुर्बे नहीं रहे...
इस कैमरे ने कैद कर ही लिया...
मैंने देखा तो दिल ने कह ही दिया...
ये वीराना भी कभी आबाद था...
भावार्थ..
1 comment:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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