एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, March 12, 2012
झूठी मूटी नींद में देखे !!!
झूठी मूटी नींद में देखे कुछ सपने झूठे मैंने भी...
सच्चे रिश्तो में है देखे कुछ अपने झूठे मैंने भी...
मिटटी की बुत है मिटटी की इस कलियुग में...
पत्थर से है बहते हैं देखे कुछ झरने झूठे मैंने भी...
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