एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, November 8, 2009
चेहरा
याद है एक बार मेरे दोनों हाथ पकड़ कर तुमने अपने चेहरे पे रख लिए थे बस उसी वक़्त मैंने चुरा लिया था तुम्हे अब तक इन्ही हाथों में संभाल रखा है जब भी खुश होती हूँ उदास होती हूँ मैं यही हाथ अपने चेहरे पे रख लेती हूँ तेरे चेहरे से अपना चेहरा ढक लेती हूँ
1 comment:
बहुत सुंदर ।
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