एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, November 25, 2009
पल !!!
राहें हैं बादल, चांदनी है मंजिल... सर्द सी हवा है और तुम हमसफ़र...
हैं बेचैन बाहें , हैं मदहोश निगाहें... खामोश लब है थमा सा ये मंजर...
सुर्ख लाल जोड़े , जो तुझको हैं ओढ़े... हया की मूरत को न लगे ये नज़र...
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