रेगिस्ताँ को कोई पयाम नहीं देता...
तड़प को उसकी अंजाम नहीं देता...
दूर तक सुकूत है दूर तक तन्हाई...
लौटकर मुझे कोई आवाज़ नहीं देता...
रास्ते बनते है तो कुछ एक पल को...
पैरों के निशाँ को कोई नाम नहीं देता...
हवा टटोलती रहती है रेत के सीने को...
बावरी को मय का कोई जाम नहीं देता...
रेगिस्ताँ को कोई पयाम नहीं देता...
तड़प को उसकी अंजाम नहीं देता...
...भावार्थ
1 comment:
हवा टटोलती रहती है रेत के सीने को...
बावरी को मय का कोई जाम नहीं देता...
beautiful lines..
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