मगर फ़िर भी एक दुनिया है...
जो मुझे जन्नत सी लगती है...
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तस्वीर !!!
"कार्ल मार्क्स" की तस्वीर ...
जो मुझे ख़ुद से ज्यादा औरो के लिए...
जीने का सबक देती है...
आज कल कोई नहीं पहचानता ..
इस सफ़ेद दाढ़ी वाले को...
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चाय की प्याली !!!
एक चाय का कप और प्लेट...
चीनी मिटटी के हैं, मगर चीनी नहीं है...
हर बार होठ तक चाय आती है तो ...
ये जायका बढ़ा देते हैं...
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किताबें !!!
इस 'किताब की दीवार' की किताबें ...
एक दूसरे को कन्धा देती हुई लगती हैं...
कुछ पढ़ी, कुछ आधी पढ़ी, कुछ अनपढ़ी ..
सबसे दोस्ती की थी मैंने जब लाया था उनको...
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एक पलंग !!!
एक तकिया और सफ़ेद चादर ...
पलंग के ओढ़ने को काफ़ी हैं ...
इसपे दरी बिछी है जिसके फटे होने के निशाँ...
चादर में छिपे रहते हैं ...
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शतरंज !!!
चौसठ खाने, आधे सफ़ेद आधे काले...
मेरे दोस्तों के कह-कहे यही चुप होते हैं ...
महाभारत के सारे हुनर...
चाणक्य की सारे चालें सब जीने लगती हैं...
जेहेन को चलते देखा है मैंने इस काठ पे...
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डायरी !!!
ख्यालो के उबाल को निब में भर के...
पन्नो पे लाना अजीब सुकून देता है...
कुछ पल को सही ये डायरी मेरी हमसफ़र है...
साँस लेने के बाद शायद यही सबसे करीब है मेरे...
तन्हाई !!!
कार्ल मार्क्स के ख्यालो को तोलने को ...
चाय की प्याली से चुस्किया लेने को ...
किताबो में भरे ख्यालो को टटोलने को...
पलंग पे थकान के बोझ को छोड़ने को...
शतरंज की चालें खेलने को...
डायरी में सोच की स्याही उडेलने को...
शायद सब से जरूरी है...ये तन्हाई
मैं और मेरी तन्हाई बनाते हैं उस जन्नत को...
मेरे कमरे की चार दीवारी में...
..भावार्थ
1 comment:
"कार्ल मार्क्स" की तस्वीर ...
जो मुझे ख़ुद से ज्यादा औरो के लिए...
जीने का सबक देती है...
आज कल कोई नहीं पहचानता ..
इस सफ़ेद दाढ़ी वाल को...
nice............nice............nice
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