धोखे को लोग आज कल ख़ुद का हुनर कहते हैं...
हाथ का खेल कभी तो कभी खेल-ऐ-नज़र कहते हैं...
रिश्ते में पहली गाँठ बेवफाई की जो है ...
इस धोखे को लोग बीती हवा का असर कहते हैं...
बात बात में बात बदल जाती है लोगों की...
अल्फाजो के जाल बुनने को वो लश्कर कहते हैं...
हंस के मिलते हैं गले से जो दोस्त बन कर...
बाजुओं में छुपे उसी धोखे को अक्सर खंजर कहते हैं...
आँखों में क्या है और क्या है उनकी जुबान पे...
दिल में फरेब पालने को लोग ख़ुद का हुनर कहते हैं..
...भावार्थ
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