Friday, March 30, 2012

अशरार !!!

अशरार !!!

किसी को वफ़ा किसी को मोहब्बत तो किसी को जिस्म मिला...
एक नाजनीन से हे हर एक आशिक को  अलग तिलिस्म मिला...

आतिश जो कहा इश्क को तो गुबार से घबराना कैसा...
डूब ही गए जब दरिया में तो तैर कर फिर जाना कैसा...
आगाज़ से अंजाम तक मोहब्बत एक पहेली है भावार्थ...
जिंदगी उलझ जाए जिसमें उसे उम्र भर सुलझाना कैसा...


अदाओं के खंजर से, नजाकत के जादू से यहाँ कोई न बचा..
तुझे बाँधने को फितरत-ए-आदम मौला ने क्या क्या न रचा..

भावार्थ...

उसका जो गर नज़ारा हो...

उसका जो गर नज़ारा हो...
तो मौत भी  हमको गवारा हो...

तड़प में कैफ मिलने लगे...
पतंगे को जो दिए का इशारा हो... 

रात-ओ-आफताब की मोहब्बत...
ज्यूं जुदाई में इश्क का शरारा हो...

शहर भीड़ ने पुछा आंसू का सबब...
डूबते को जैसे तिनके का सहारा हो...

भावार्थ...

Wednesday, March 28, 2012

उसे समझा अपना हमने...

उसने दिल को जो लगाया तो उसे समझा अपना हमने...
हंस के जो हाथ बढाया तो उसे समझा अपना हमने...

बोझिल हुई आँखों ने सुनी उस पे गुजरी हुई ...
हाल-ए- दिल जो बताया तो उसे समझा अपना हमने...

कदमो में हुई हल चल तो मंजिल हुई नसीब...
फिर रस्ता जो बन आया तो उसे समझा अपना हमने...

हाल हुआ बेहाल जब  उस अजनबी से मिली नज़र...
दीवाना जो नाम पाया तो उसे समझा अपना हमने...

माथे पे लकीरों का नहीं निशाँ, है हथेली भी खाली...
खुदा की जो पड़ी नज़र  तो उसे समझा अपना हमने...

दुनिया की बेचैन फिजाओं में रही बेकल सी रूह मेरी....
बँजर जेहेन में सुखन-ए-लहर को समझा अपना हमने...

बाज़ार सजे हैं बिकने को आज फिर इस शाम...
खरीददारों ने लगाया जो भाव उसे समझा अपना हमने...

उसने दिल को जो लगाया तो उसे समझा अपना हमने...
हंस के जो हाथ बढाया तो उसे समझा अपना हमने...

भावार्थ...  

Monday, March 26, 2012

हो सके तो खुद को संभालो...

हो सके तो मुस्कुरालो...
हो सके तो मुस्कुरालो...

इस गम को कहीं छुपा लो....
हो सके तो खुद को संभालो...

कुंस है रह जायेगा...
दर्द है बह जायेगा...

हो सके तो खुद को संभालो...
इस गम को कहीं छुपा लो...

जेहेन में न वो बात आये...
खुदा करे न वो रात आये...

खुद से खुदी को बचालो...
हो सके तो मुस्कुरालो...

तुझ बिन तेरी आरजू तो है...
जो नहीं है तू जुस्तजू तो है...


मौत को जिंदगी से बचालो...
हो सके तो खुद को संभालो... 


भावार्थ...

Sunday, March 25, 2012

मेरे दिल...

बिखरने से पहले संभल जा...
उससे मिलने से पहले संभल जा...

मेरे दिल...
मेरे दिल...
मेरे दिल...

नज़र का असर जब होने लगे...
अदा  का  कहर जब होने लगे...

बिखरने से पहले संभल जा...
उससे मिलने से पहले संभल जा...

मेरे दिल...
मेरे दिल...
मेरे दिल...

कातिल क़त्ल हो  जाएगा...
अजनबी से वस्ल हो जायेगा...
 
बिखरने से पहले संभल जा...
उससे मिलने से पहले संभल जा...

मेरे दिल...
मेरे दिल...
मेरे दिल...

भावार्थ...

क्या फायदा... !!!

Monday, March 19, 2012

मेरी तमन्नाओ का बाज़ार तू...

अब की हम खेलय होरी पर रंग नहीं सुहाय...
बिरह घोर अन्गुरियन में अंसुअन दिए लगाय...

नज़रो का रंग तू  गालो का गुलाल तू...
दिन का आफताब तू शब् का हिलाल तू....

मंजर हुआ नसीब जहाँ खुद को दिया भुलाय...
बिरह घोर अन्गुरियन में अंसुअन दिए लगाय...

में गर गुल तो गुलज़ार तू...
मेरी  तमन्नाओ का बाज़ार तू...

बिसरा के होश खुद को कमली दिया बताय...
बिरह घोर अन्गुरियन में अंसुअन दिए लगाय...

अब की हम खेलय होरी पर रंग नहीं सुहाय...
बिरह घोर अन्गुरियन में अंसुअन दिए लगाय...

भावार्थ...

मगर तुम नहीं आये ...

आज फिर मैं हूँ तनहा...
है आज फिर वही गम  ...
आज फिर मुन्तजिर हूँ
आँख आज फिर रही  नम...

मगर तुम नहीं आये ...
मगर तुम नहीं आये...

किस कदर तेज चलती ये साँसे...
दर्द तोलती हैं बेबस ये  आहें...
किस कदर छाई तेरी ये यादें...
कुंस बोलती हैं  बेकस ये बाहें...

मगर तुम नहीं आये ...

मगर तुम नहीं आये...

भावार्थ...

Saturday, March 17, 2012

शेर कुछ पुराने नहीं सुने...

हुए दिन कितने वो किस्से पुराने  नहीं सुने...
फुर्सत नहीं देखी चैन के फ़साने नहीं सुने...

दिल के गुबार लोगों के जेहेन पे हावी हैं..
दिल से किसी ने उनके अफसाने नहीं सुने...

कोई तो बात है जो आज वो गमसुम है...
दिलबर ने उल्फत के फकत तराने नहीं सुने...

उसके दिल कि बात सबने लबो से पढ़ी...
आँखों से बोलते अल्फाज़ अनजाने नहीं सुने...

तलाश में सुकून के  क्या नहीं किया ...
उसने शायद कभी शेर कुछ पुराने नहीं सुने...


भावार्थ

Friday, March 16, 2012

दिए के दिल से यूँ कराह निकली...

दिए के दिल से यूँ कराह निकली...
हवा शाम की वो जैसे बेवफा निकली...

वो जो मचल रही थी तरंग भीतर...
बस कुछ एक पल की चाह निकली...

जुस्तजू मौत की करते रहे हम...
जींद से दोस्ती उसकी बेपनाह निकली...

मंजिल की तलाश में हम तो होश में थे ...
क्या करते जो आवारा हमारी राह निकली...

दफ़न करने को दुनिया मुन्तजिर उसकी   ...
ढूढा तो वो मेरी रूह में जिन्दाह निकली..

जलते जलते फिर बुझ गया वो चिराग...
हवा शाम की वो जैसे बेवफा निकली...

भावार्थ...

Thursday, March 15, 2012

गर खुदा है तो !!!

गर खुदा है तो फिर क्यों नज़र नहीं आता...
दुआ हैं तो उनका क्यों असर नहीं आता...

फिर नदी से गुजरा फिर एक सिक्का फैंका...
जूनून-ए-मज़हब सर से क्यों उतर  नहीं जाता...

अपनों को छोड़ गैरों को खैरात बांटते लोग ...
बौराए  लोगो का  दौर अब क्यों गुजर नहीं जाता...

वीरानो की तलाश में भागती भीड़ देखो...
माँ के साए में कोई क्यों रहकर नहीं जाता...

जो देखो वही लत-ए-जिंदगी का शिकार हुआ...
इस बद-हवासी से कोई क्यों बचकर नहीं जाता...

दौलत के जखीरे न जाने किस समंदर में गुम हों...
मुस्कुराहट किसी और के नाम क्यों कर नहीं जाता...

गर खुदा है तो फिर क्यों नज़र नहीं आता...
दुआ हैं तो उनका क्यों असर नहीं आता...

भावार्थ...

Monday, March 12, 2012

दीप जिसका मोहल्ला धीमे जले !!!

दीप जिसका मोहल्ला धीमे जले...
चंद लोगों की खुशियों को ले कर चले...
वो हर साए में हर मसलियत के पले...
ऐसे दस्तूर को...
सुबह बेनूर को...
में नहीं मानता मैं नहीं जानता...

मैं भी खरिफ नहीं तख़्त-ए-दार से...
मैं भी मंसूर हूँ कह तो अगियार से...
क्यों डराते हो जिन्दों की दीवार से...
जुल्म की बात को...
जेहेल की रात को...
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता...

फूल साखों पे खिलने लगे तुम कहो...
जाम रिन्दों को मिलने लगे तुम कहो...
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो...
इस खुले झूठ को
जेहेन की लूट को..
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता...

तुमने लूटा है सदियों हमारा सुकून...
अब न हम पर चलेगा तुम्हार फिसून...
चार अगर दर्द मंदों के बनते हो क्यों...
तुम नहीं चार गर...
कोई माने मगर...
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता...


हबीब जलीब !!!








कह दो वो दिल की बातें

कह दो वो दिल की बातें तुम्हारे दिल में आती हैं,

जो मेरी समझ से परे हैं पर वो तुम्हे बड़ा सताती हैं।

ये बेकरारी रातो की कुछ खयालो का ही सिला होगा,

कह दो वो अफसाने जो ये रात बस तुम्हे सुनाती हैं

पल-पल जिस टीस ने तुम्हारे जेहेन को झकझोरा है,

ख़ुद सोती याद मेरी और ना ही तुम्हे सुलाती है

सालो के मलहम से तेरे चाक जो सारे सिल पाये,

ये मुझसे जुड़ी कसक तुम्हे भी वहीँ-वहीँ दुखाती है


अक्ल की बात सदा ही तुम्हारे लबों तक पहुँची है,

मन में भी तुम्हारे बात कोई सपने नए सजाती हैं।


कह दो वो दिल की बातें जो तुम्हारे दिल में आती हैं,

जो मेरी समझ से परे हैं पर वो तुम्हे बड़ा सताती हैं



भावार्थ... Labels: भावार्थ scheduled 12/27/08 by No Mad Explorer....

झूठी मूटी नींद में देखे !!!

झूठी मूटी नींद में देखे कुछ सपने झूठे मैंने भी...
सच्चे रिश्तो में है देखे कुछ अपने झूठे मैंने भी...
मिटटी की बुत है मिटटी की इस कलियुग में...
पत्थर से है बहते हैं देखे कुछ झरने झूठे मैंने भी...

भावार्थ  

एक बस तू ही नहीं

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...

उठकर मंजिल ही आये तो शायद कुछ हो...
शौक-ए-मंजिल तो मेरा अब रफा हो बैठा...

मसले हत छीन गयी कुव्वाते गुफ्तार मगर...
कुछ न कहना भी मेरी सजा हो बैठा...

शुक्रिया ए मेरे कातिल इ मसीहा मेरे...
जहर जो तुने दिया वो दवा हो बैठा...

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा...





एहशान दानिश...  

वो हमसफ़र था !!!

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं  रहे...
जब तक हमारे रहे वो हम नहीं रहे...
अदावतें थी तगाफुल था रंजिशें थी मगर...
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...

धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

बिछड़ते वक़्त उन आखों में थी हमारी ग़ज़ल...
ग़ज़ल वो भी जो अभी किसी को सुनाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...
काज़ल डारूं किरकिराए सुरमा सहा न जाए...
जिन नैनं में पिय बसें कोई और न समय...
किसे  पुकार रहा था डूबता रहा दिन...
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

कभी ये हाल कि दोनों में यक्दिली थी नसीर...
कभी ये मरहला कि आशानाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...

धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

नसीर तुराबी   !!!


ये वीराना भी कभी आबाद था...

ये वीराना भी कभी आबाद था...

हरे भरे गलियारों से...
घर के चौक दुवारो से...

ये वीराना भी कभी आबाद था...


इस मैदान में बचपन बीता है...
यहाँ शोर चुपचाप आज भी जीता है...

ये वीराना भी कभी आबाद था...

होली का रंग इंटो में आज भी लिपटा सा है...
दिए की लौ का धुआं कौने में  चिपटा  सा है...

ये वीराना भी कभी आबाद था...


क्या हुआ जो आज बुजुर्ग नहीं रहे...
दुआ नहीं रही उनके तजुर्बे नहीं रहे...

इस कैमरे ने कैद कर ही लिया...
मैंने देखा तो दिल ने कह ही दिया...

ये वीराना भी कभी आबाद था...
भावार्थ..  

Sunday, March 11, 2012

तुम से मिलकर

मौत जिंदगी में और जिंदगी जीने में मायने ढूढती है...
हर रूह जो तनहा है दिल की बात कहने को आईने ढूढती है...

तुम से मिलकर कुछ बदल सा जाता हूँ...
नशे में रह कर भी   संभल सा जाता हूँ...

भावार्थ









Monday, March 5, 2012

दरिया सी वो कायनात !!!

दरिया सी है  कायनात वो जिसमें  डूबता सा जाता हूँ मैं ...
आगोश में जिसके  रेत की तरह   टूटता  सा जाता हूँ मैं...

खुद से बेख़ौफ़ हो गया अब किसी का खौफ क्या...
इमारत-ए-रूह, जकड-ए-जेहेन से छूटता सा जाता हूँ मैं...

नशा कांच के अक्स के सिवा इस  मिटटी मैं भी है...
एक नशे को छोड़  उस नशे को लूटता  सा जाता हूँ मैं...

जन्नत-ए-जींद के साहिल पे आज फिर दरिया से उबरा हूँ मैं...
रोग-ए-मौत का इलाज़ करने को उसी में कूदता सा जाता हूँ मैं...

जन्नत-ए-हयात  गर है बस यही तो खाब-ए-जन्नत न सही...
जितनी बार ये नसीब उससे  मूह फेर के लौटता सा जाता हूँ मैं...

गुल निखत  , रंग दिए, रौशनी महक, ये गुलिस्ताँ-ओ- आफताब ....
कैद कर सब हर्फ़ में  ले जिंदगी तुझसे दूर छूटता सा  जाता हूँ मैं...

काबे की   इबादत  बेअसर हुई बुत खाने में किये  सजदे भी  न लगे ...
खुदा-ओ-शिव  हैं भी  या है वहम ये सवाल पूछता  सा जाता हूँ मैं...


दरिया सी है कायनात वो जिसमें डूबता सा जाता हूँ मैं ...

आगोश में जिसके रेत की तरह टूटता सा जाता हूँ मैं...

 भावार्थ...

Sunday, March 4, 2012

जिंदगी से दोस्ती की...

एक हद तक हमने उन दोस्तों  से दोस्ती की...
तन्हाई से  हुई वस्ल तो  जिंदगी से  दोस्ती की...

कब तक बीते कल की कैफियत में जीते हम....
हमारे आज ने  फिर आरहे कल से  दोस्ती की...

सब दोस्त अपनी दुनिया में  होते गए गुम...
वहशी ने फिर उस नाजनीन से दोस्ती की...

कहते भी तो किससे कहते जेहेन की हलचल...
तल्खियों ने मेरी  फिर इस ग़ज़ल से दोस्ती की...

कब तक बहलाते बीती यादों से   दिल को...
जीने को जिंदगी फिर मशीनों  से दोस्ती की...

कनक बे-असर और चांदी  फीकी थी उन दिनों...
बेसब्र तमन्नाओं के लिए कागज़ से दोस्ती की...

मैं अगर मैं था तो अपने दोस्तों  की महफ़िल में...
रिश्ते  निभाने को मैंने एक नए चेहरे से दोस्ती की...

एक हद तक हमने उन दोस्तों से दोस्ती की...

तन्हाई से हुई वस्ल तो जिंदगी से दोस्ती की...
भावार्थ...