Monday, October 5, 2015

तुम न मरने तो अपनी माँ को

तुम न मरने तो अपनी माँ को 
तुम न मिटने तो अपनी माँ को 

मिटा ही दो उस रीत को तुम 
जिसको पुरखो ने बनाया था 
गौ माता  और कामधेनु कह 
उन लोगों ने मेरा मान बढ़ाया था
बेघर दिखती  है गलियों में जो 
तुम यूँ न फिरने दो अपनी माँ को 
तुम न मिटने तो अपनी माँ को 

तुम न मरने तो अपनी माँ को 
तुम न मिटने तो अपनी माँ को 

भूख से है दयनीय हाल मेरा 
कैसे फिर  तुमको दूँ वरदान
अश्रु मेरे तुम देख न पाते 
कैसे समझूँ तुमको इंसान 
इस भूख की गहरी खायी में 
न गिरने दो पानी माँ को 
तुम न मिटने दो पानी माँ को 

तुम न मरने तो अपनी माँ को 
तुम न मिटने तो अपनी माँ को 


हर आह मेरी मुझतक सीमित 
इस बहरे धरम के लोगों में 
बस मूह की बकबक करके जो 
लिप्त हुए हैं विषयों  भोगों में  
इस नरक से बूचड़ खाने में 
तुम न  कटने ने दो अपनी माँ को 

तुम न मरने तो अपनी माँ को 
तुम न मिटने तो अपनी माँ को 

भावार्थ 
०२/१०/२०१५ 


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