Saturday, October 10, 2015

पोटली दर्द की लिए फिरता तू




पोटली दर्द की लिए फिरता तू
क्यों न खुदसे दूर इसे रखता तू

पोटली दर्द की लिए फिरता तू …

आह ये जिस्म से जो उठती है
थक गया हूँ बस यही कहता तू

पोटली दर्द की लिए फिरता तू …

कून्स जो एक तेरे जेहेन में हैं
कोढ़ बनके  क्यों है रिसता तू

पोटली दर्द की लिए फिरता तू …

मंजिल से पहले ही राह मिट गयी
किस वजह से है फिर  चलता तू

पोटली दर्द की लिए फिरता तू …

तूने बारिश बनके लुटाया है सब
रह गया है सेहरा सा कराहता तू

पोटली दर्द की लिए फिरता तू …

हर  मरासिम की डोर टूट गयी
क्यों उसी डोर से है बंधा रहता तू 

पोटली दर्द की लिए फिरता तू
क्यों न खुदसे दूर इसे रखता तू

भावार्थ
११/१०/२१०५



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