पोटली दर्द की लिए फिरता तू
क्यों न खुदसे दूर इसे रखता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू …
आह ये जिस्म से जो उठती है
थक गया हूँ बस यही कहता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू …
कून्स जो एक तेरे जेहेन में हैं
कोढ़ बनके क्यों है रिसता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू …
मंजिल से पहले ही राह मिट गयी
किस वजह से है फिर चलता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू …
तूने बारिश बनके लुटाया है सब
रह गया है सेहरा सा कराहता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू …
हर मरासिम की डोर टूट गयी
क्यों उसी डोर से है बंधा रहता तू
पोटली दर्द की लिए फिरता तू
क्यों न खुदसे दूर इसे रखता तू
भावार्थ
११/१०/२१०५
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