~ इश्क़ ~
इश्क़ इक अलफ़ाज़ भर नहीं
ये गूंजती मचलती ग़ज़ल है
घुँघरू की छन छन की तरह
रूह की जिस्म से वसल है
जीने के लिए एक जिंदगी बहुत ज्यादा है
और पाक मोहब्बत के लिए बहुत कम
अलफ़ाज़ उस आग को बयाँ कैसे करें
जो लगाये ना लगे और बुझाए न बुझे
बहुत उधार बाकी है हमसफ़र का मुझपे
हर एक बोसा जो उसने मरहम का दिया
तेरे होने से सांस है
तेरे होने से आज है
तेरे होने से हर्फ़ हैं
तेरे होने से साज हैं
गर खुदा ने दर्द की जिंदगी बख्शी
तो इश्क़ का मरहम भी दिया उसने
इश्क़ जब परवान चढ़ता है
तो हमशक्ल हो जाते है हम
भावार्थ
१५/१०/२०१५
इश्क़ इक अलफ़ाज़ भर नहीं
ये गूंजती मचलती ग़ज़ल है
घुँघरू की छन छन की तरह
रूह की जिस्म से वसल है
जीने के लिए एक जिंदगी बहुत ज्यादा है
और पाक मोहब्बत के लिए बहुत कम
अलफ़ाज़ उस आग को बयाँ कैसे करें
जो लगाये ना लगे और बुझाए न बुझे
बहुत उधार बाकी है हमसफ़र का मुझपे
हर एक बोसा जो उसने मरहम का दिया
तेरे होने से सांस है
तेरे होने से आज है
तेरे होने से हर्फ़ हैं
तेरे होने से साज हैं
गर खुदा ने दर्द की जिंदगी बख्शी
तो इश्क़ का मरहम भी दिया उसने
इश्क़ जब परवान चढ़ता है
तो हमशक्ल हो जाते है हम
भावार्थ
१५/१०/२०१५
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