एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, May 24, 2015
ग़ालिब की कलम से
जिंदगी अपनी जब इस शक्ल में गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के हम खुदा रखते थे
1 comment:
Ajay,
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your old friend
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