दाग दामन के हो दिल के हो या चहेरे के फ़राज़...
कुछ निशाँ वक़्त की रफ़्तार से लग जाते हैं ...
जरा सी गर्द-ए-हवस दिल पे ठीक है फ़राज़...
वो इश्क ही क्या जो दामन पाक चाहता है...
आशिकी में मीर जैसे खाब मत देखा करो...
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो...
वाशातें बढती गयी हिज्र के अजार के साथ...
अब तो हम बात भी नहीं करते गम खर के साथ...
अहमद फ़राज़ !!!
कुछ निशाँ वक़्त की रफ़्तार से लग जाते हैं ...
जरा सी गर्द-ए-हवस दिल पे ठीक है फ़राज़...
वो इश्क ही क्या जो दामन पाक चाहता है...
आशिकी में मीर जैसे खाब मत देखा करो...
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो...
वाशातें बढती गयी हिज्र के अजार के साथ...
अब तो हम बात भी नहीं करते गम खर के साथ...
अहमद फ़राज़ !!!
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