Friday, April 6, 2012

उन खंडहरों तक ये इंसानियत पहुंची...

उन खंडहरों  तक ये इंसानियत पहुंची...
वीरानियों तक उसकी वहशियत पहुंची...

दर्द की गूँज कूंचो पे हुई बेगानी...
हाथ से पहले भीड़ की नसीहत पहुंची...

मौत का मर्ज लिए जिंदगी फिरती है...
उस मुकाम तक मेरी तबियत पहुंची...

जिंदगी जीने का सबब न जाना हमने...
खुदा की मेहर से पहले शरियत पहुंची...

पाट दो ये दीवारों से झांकती  खिड़कियाँ...
वादा-ए-झूठ से पहले असलियत पहुंची...
भावार्थ

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