Monday, February 27, 2012

वक़्त-ए-रुखसत अलविदा

चुपके चुपके रार दिन आंसूं बहाना याद है...
हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है...

बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्ताँ...
वो कलाई में तेरा कँगन घुमाना याद है... 

वक़्त-ए-रुखसत अलविदा का लफ्ज़ कहने  के लिए...
वो तेरे सूखे लबो का थरथराना याद है..

हसरत मोहनी !!!

These two "shers" are not there in popular song... but they were there in orginal gazal written by hasrat mohani in 1909..

Sunday, February 26, 2012

कुछ और बात करो...

छोड़ो भी ये दुनियादारी अब कुछ और बात करो...
बहुत बढ़ गयी जानकारी अब कुछ और बात करो...

जितने  भीतर उतने बाहर खेल हैं खिलाडियों के
क्रिकेट में फिर हार गए क्या ? कुछ और बात करो...

गाडी का क्या है बस चलती है चलती ही जाए...
पडोसी  ने ले ली नयी फरारी तो कुछ और बात करो...

भ्रस्टाचार का दर्जा कितना नीचा अपनी नज़र में...
हवलदार जी  रखो सौ की पत्ती कुछ और बात करो...

बदल जाए ये दुनिया पल में राम राज फिर आ जाये....
नौबत आये खुद को बदलने की तो कुछ और बात करो...


छोड़ो भी ये दुनियादारी अब कुछ और बात करो...

बहुत बढ़ गयी जानकारी अब कुछ और बात करो...

भावार्थ...

Saturday, February 25, 2012

मजाज़ लखनवी...

हमदम यही है रहगुज़र-ए-यार-ए-खुशखिराम...


गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम...

मजाज़ लखनवी...





(hamdam : companion; rahguzar-e-yaar-e-khushkhiraam : pathway of the joyous and graceful gait of the beloved; kahkashaaN : galaxy)



Tuesday, February 21, 2012

मैं यूँ बेवफा न होता..

दुनिया के पैमाने पे कसा उसने ...
मेरी मोहब्बत भी गर तोली होती...

गुबार दिल में लिए फिरती रही...
दो लफ्ज़ भी वो गर बोली होती...

कितने खाब सजाये थे उसने भी...
दीदार को आँख जो गर खोली होती...

मैं उससे जुदा न होता...
मैं   यूँ बेवफा न होता....

भावार्थ


पूछती है अजन्मी परी....

जिंदगी  कोख से खफा क्यों है...
मोहब्बत जिंदगी से खफा क्यों है...
इंसान  मोहब्बत से खफा क्यों है...
खुदा इंसान से खफा क्यों है...
इबादत खुदा से खफा क्यों है...
दिल इबादत से खफा क्यों है...
पूछती है अजन्मी परी....

भावार्थ...

STOP ABORTION.....


Monday, February 20, 2012

दुनिया जीतने का खाब भुला मैंने...

दुनिया जीतने का खाब भुला मैंने...
खुद को जीतने का मन बनाया है...
कांच से चमकते आशियाने को छोड़...
मिटटी में रमने का मन बनाया है...

जिंदगी क्या है हर छिन बदलती काया...
सांस दिए सी पल पल जल बुझ रही है...
कोई किवदंती सी जो सुनी सुनी सी है...
या कोई पहेली सी जो बस उलझ रही है...

दर्द कोई छोटा नहीं और ख़ुशी कोइम बड़ी नहीं...
कहाँ से पैमाना शुरू हो और कहाँ ख़तम...
भंगुर रिश्तो की गहराई कैसे तय करूँ...
भीतर का सफ़र कहाँ शुरू हो और कहाँ ख़तम...

माया कोई हवा नहीं कोई अफकार नहीं...
भयावय दलदल है जिसमें डूबता जाता हूँ...
खुद ने जना है इसके कतरे कतरे को मैंने...
उबरने की तड़प है मगर डूबता जाता हूँ...

बस में क्या है मेरे कुछ भी तो नहीं...
भागने में गिरने तो कभी चलने में रुकने का डर है...
क्या हासिल मुझे और क्या हासिल नहीं...
पाने में खोने का तो कभी खोने में पाने का डर है...

पा भी लिया सब तो भी बसर अधूरा ही रहा...
बसर राह मिली तो भी सजर अधूरा ही रहा...
मंजिल मिल गयी  तो भी मंजर अधूरा ही रहा...
मंजर पे मैं हूँ मगर तो भी सफ़र अधूरा ही रहा...

तभी तो अधूरे सफ़र को पूरा करने को...

दुनिया जीतने का खाब भुला मैंने...
खुद को जीतने का मन बनाया है...
कांच से चमकते आशियाने को छोड़...
मिटटी में रमने का मन बनाया है...

भावार्थ...

तन्हाई !!!

आज फिर तन्हाई ने टटोला मुझे...
मालूम है क्या मिला उसको...
तुम्हारी यादो के कुछ गुच्छे ...
धडकनों में बेसब्री की पोटली...
आँखों में गम की लड़ियाँ...
दिल में तड़प के पुलिंदे...
साँसों में गुथा तुम्हारा नाम...
रगों में घुला तुम्हारा वजूद...
पलकों में बंधा तुम्हारा इंतज़ार...
होठो पे चढ़ा तुम्हारा खुमार...
हाथो में उकेरी तुम्हारी लकीरें...
बालो में उँगलियों के निशाँ..
और आईने में तुम्हारी सूरत...
ये सब देख लौट गयी तन्हाई...
मुझे फिर तनहा छोड़ कर...

भावार्थ...

Saturday, February 18, 2012

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...
याद रह जाएगी ये  रात करीब आ जाओ...

एक मुद्दत से तमन्ना थी तुम्हें छूने की...
आज बसमें नहीं जज्बात करीब आ जाओ...

सर्द झोंको से भड़कते हैं बदन में शोले...
जान ले लेगी ये बरसात करीब आ जाओ...

इस कदर हमसे झिझकने के जरूरत क्या है....
जिंदगी भर का है अब साथ करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

याद रह जाएगी ये रात करीब आ जाओ...

साहिर लुधियानवी...





Wednesday, February 15, 2012

लोग कहते हैं कि मैं बावरा हूँ...

मेरी अक्ल से झांकता है  मेरा दिल...
और लोग कहते हैं कि मैं बावरा  हूँ...

मेरी मंजिल है सब मन्जिल पाएं....
गम भी आंसू  भर भर के मुस्कुराएं...
याद सब की संभालता है मेरा दिल...
और लोग कहते हैं कि मैं बावरा हूँ...

औरो के दर्द हो  तो नम हैं आँखें मेरी....
थामने बहके हुए को हैं खुली बाहें मेरी...
तनहाई अजनबी की बांटता है मेरा दिल...
और लोग कहते हैं कि मैं बावरा हूँ...

दोस्त एक लम्हा है दोस्ती मंजिल है...
लम्हा न हो तो जिंदगी बोझिल है...
मंजिल को  रास्ता मानता है मेरा दिल....
और लोग कहते हैं कि में बावरा हूँ...

मेरी अक्ल से झांकता है मेरा दिल...

और लोग कहते हैं कि मैं बावरा हूँ...







Tuesday, February 14, 2012

वही हद है मोहब्बत की...

जब आंसू गालो तक आयेंगे....
जब दर्द गले में भर आयेंगे....
जब सेलाब आँखों से उतर आयेंगे...
वही हद है उल्फत की...
वही हद है मोहब्बत की...

जब ख़ामोशी इर्द गिर्द चिल्लाएगी....
जब तन्हाई बाहँ खोले बुलाएगी...
जब बदहोशी जेहेन में समाएगी...
वही हद है उल्फत की...
वही हद है मोहब्बत की...

जब बात  दीवारों के पार आ जाये...
जब इज्ज़त कूंचो पे उछाली जाये ....
जब किस्सा  अफसाना बनता जाये...
वही हद है मोहब्बत की...
वही हद है मोहब्बत की...

भावार्थ

Sunday, February 5, 2012

और मुझे होश आये...

अब कुछ मोजजा हो...
और मुझे होश आये...
बेहोशी टूटे जिंदगी की...
और फिर होश आये...
मन ही से हारा हूँ मैं ...
बुझा सा तारा हूँ मैं ...
बोझिल सा किनारा हूँ मैं ...
काश  वो जोश आये...
और मुझे होश आये...
न इबादत का हुआ असर ...
न कोई सजदा ही नसीब....
न अपने की मन्नत लगी....
न कोई दुआ मांगे रकीब...
गम है एहसास का जज्बा....
काश ये दिल खोज लाये....
और मुझे होश आये...

भावार्थ




Friday, February 3, 2012



तुम्हारी सी एक तस्वीर देखी... 
मेरे इर्द गिर्द चलती फिरती...
मुझसे कहती की कहाँ गुम हो... 
क्यों फिर कल में गुम सुम हो...
मेरे पास आओ, बात करो....
पूरी वो अधूरी मुलाकात करो...
रात का वो किस्सा...
गए कल का वो वाकया....
वो गुदगुदी करते कहकहे...
चलो अब सुना भी दो...
और में भी कितना बुद्धू....
तस्वीर को "तुम" समझ बैठा...
लबो पर अलफ़ाज़...
अल्फाजों में हाल....
खुद ब खुद बयान होता गया...
मगर फिर ठिठका पल भर को...
तुमने ये सफ़ेद साड़ी क्यों पहनी है...
पूछ बैठा तुमसे में भी...
बोली तुमने "पेन्सिल" उठाई है " भावार्थ"...
और पेन्सिल से लकीरें बनती है...
तस्वीर बनती है उसमें रंग नहीं....
और तुम फिर तस्वीर  बन गयी...
मैंने फिर गुम हो गया इसे सोच में...
की वो तुम थी या तुम्हारी तस्वीर...

भावार्थ...

मायने

हैराँ हूँ परेशाँ हूँ...
इस जिंदगी के मायने क्या हैं ?
जीने के, मरने के...
जिन्दादिली भरने के मायने क्या हैं ?
जो दिल चाहता है वो दुनिया नहीं....
और जो दुनिया चाहे उसे हम नहीं...
यूँ घुटने के यूँ टूटने के...
यूँ ही अरमा फूटने के मायने क्या हैं...
ये उमंग जो सिर्फ तरंग भर है...
पल को जिस्म जो  संग भर है...
जानकर भी अनजान के मायने क्या हैं...
हकीकत यही तो ठीक नहीं...
तबियत आज फिर ठीक नहीं....
मौत के बाद जिंदगी के मायने क्या हैं....
हैराँ हूँ परेशाँ हूँ....
इस जिंदगी के मायने क्या हैं...

भावार्थ...