Monday, February 27, 2012

वक़्त-ए-रुखसत अलविदा

चुपके चुपके रार दिन आंसूं बहाना याद है...
हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है...

बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्ताँ...
वो कलाई में तेरा कँगन घुमाना याद है... 

वक़्त-ए-रुखसत अलविदा का लफ्ज़ कहने  के लिए...
वो तेरे सूखे लबो का थरथराना याद है..

हसरत मोहनी !!!

These two "shers" are not there in popular song... but they were there in orginal gazal written by hasrat mohani in 1909..

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