Thursday, May 19, 2016

नीर है ये पीर

निवाले को जो तरसते रहे
आज बूँद भर को प्यासे हैं
तू करम करेगा एक दिन
लगता है की बस दिलासे हैं

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

प्यास की तड़प तो देखो
लब सूख कर चरमराने लगे
बोझिल हो रही है नजरें
कंठ फूट कर लड़खड़ाने लगे

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

पानी देखो दर्द बन बैठा
प्यास बन गयी है बीमारी
गाढ़ा हो गया खून सबका
कंठ ने है फिर चीख मारी

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

दरिया को जमीं निगल गयी
फट पड़ा जमीं का सीना
बाँझ  हो गए सब बादल
बड़ा मुश्किल हुआ है जीना 

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला


कुएं कुंडली मार गए
नहर का नहीं है निशिान
तालाब वीराने हो गए
सब खेत हुए हैं शमशान

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

भावार्थ 
१९/०५/२०१६ 


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