Tuesday, May 24, 2016

छुट्टियाँ

आज कल की छुट्टियाँ भी क्या अजीब हैं
जब भी लौटा हूँ इनसे थक कर लौटा हूँ
भावार्थ
२४/०५/२०१६

Thursday, May 19, 2016

नीर है ये पीर

निवाले को जो तरसते रहे
आज बूँद भर को प्यासे हैं
तू करम करेगा एक दिन
लगता है की बस दिलासे हैं

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

प्यास की तड़प तो देखो
लब सूख कर चरमराने लगे
बोझिल हो रही है नजरें
कंठ फूट कर लड़खड़ाने लगे

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

पानी देखो दर्द बन बैठा
प्यास बन गयी है बीमारी
गाढ़ा हो गया खून सबका
कंठ ने है फिर चीख मारी

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

दरिया को जमीं निगल गयी
फट पड़ा जमीं का सीना
बाँझ  हो गए सब बादल
बड़ा मुश्किल हुआ है जीना 

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला


कुएं कुंडली मार गए
नहर का नहीं है निशिान
तालाब वीराने हो गए
सब खेत हुए हैं शमशान

क्यूँ हुआ है बेरहम तू मौला  
कर दे बन्दों पे रहम तू मौला

भावार्थ 
१९/०५/२०१६ 


हर लफ्ज़ तेरा एक दरिया है

हर लफ्ज़ तेरा एक दरिया है
हर शेर तेरा एक समंदर है
एक दुनिया है तेरी ग़ज़लें
जाने क्या क्या उसके अंदर है

भावार्थ

ग़ालिब की ग़ज़लों के बारे में... 

मिर्ज़ा असद ग़ालिब !!!


Saturday, May 14, 2016

बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल

बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल
वजूद ख़ाक में है मिटा चुका तू अब लौट चल

छोड़ दे तू उन बेपरवाह खाईशों  का दामन
तोड़ से ये अरमान के खोखले आशियाने
सराब-ए- सफर था ये तेरा तू अब लौट चल
बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल

बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल
वजूद ख़ाक में है मिटा चुका तू अब लौट चल

अजनबी चेहरों में कभी हमराज़ नहीं मिलते
अंजान शहरों में  यूँ ही आशियाने नहीं मिलते
नहीं मिलेगा हमनवाँ कोई तू अब लौट चल
बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल

बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल
वजूद ख़ाक में है मिटा चुका तू अब लौट चल

जूनू सफर का तेरा अब जर्द हो चुका शायद 
मजा परवाज़ का अब  दर्द हो चुका शायद
हो गयी सहर जिंदगी की तू अब लौट चल
बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल

बहुत दूर तलक है आ चुका तू अब लौट चल
वजूद ख़ाक में है मिटा चुका तू अब लौट चल

भावार्थ
१४/०५/२०१६







Saturday, May 7, 2016

वो मेरी माँ थी

वो मेरी माँ थी

मेरी भूख की मंजिल
सब अनजाने चेहरों में अपनी
इक  कठपुतली सी थिरकती
वो मेरी माँ थी

मेरी दर्द को सहती
मुझसे मेरी जुबाँ में कहती
मेरी हर आवाज़ पे तड़पती
वो मेरी माँ  थी

मेरे टूटे बोलों को बनाती
मेरी बातों पे गौर फरमाती
मेरी नासमझी को समझती
वो मेरी माँ थी

मुझसे बिछुड़ कर देर तक रोये
मेरी याद में न नींद भर सोये
आँखों  में आंसू सी झलकती
वो मेरी माँ थी

भावार्थ

08/05/2016
Happy mother's Day !!!