Sunday, May 24, 2015

ग़ालिब की कलम से

जिंदगी अपनी जब इस शक्ल में गुज़री ग़ालिब
हम  भी क्या याद करेंगे के हम  खुदा  रखते थे




Thursday, May 21, 2015

तू आरजू तू तमन्ना

तू आरजू तू तमन्ना
तू हसरत  ही नहीं बस

इन खाबो  से भी  परे
एक शख्शियत है  तेरी
मर्द के एहसासों से परे
एक कवायद  है तेरी

तू सुरूर तू चाहत  
तू नज़ाकत  ही नहीं बस

तेरे अरमान भी तो
नयी परवाज़ रखते हैं
तेरे उनमान भी तो
अपने कई नाम रखते हैं

तू हया तू श्रृंगार
तू मोहब्बत  ही नहीं बस

तुझमें  दर्द भी रहता है
एक परछाई सी बनकर
आँखों में काजल बहता है
इक तन्हाई सी बनाकर

तू तरंग तू उमंग
तू इबादत ही नहीं बस

तू आरजू तू तमन्ना
तू हसरत  ही नहीं बस


 भावार्थ 
२२/०५/२०१४ 

Monday, May 11, 2015

रात की कैद में ये चाँद और तारे हैं

रात की कैद में  ये चाँद और तारे हैं
जरा देखिये गौर से ये अक्स हमारे हैं

दरिया ये तेरे खाबो का तुझे ले डूबेगा
जिसने की इबादत बस वो ही किनारे हैं

ए पाखी परवाज़ जरा तू नीची रख
कल ही तूफ़ान ने कई पंख उखाड़े  हैं

लड़खड़ा रहे  हैं जो कल गिर जाएंगे
कुछ इस तरह के हुए वजूद हमारे हैं

रफ़्तार जरा तू धीमी कर इस जीने की
जो भागे हैं जोरो से वो  दौड़ को  हारे हैं

रात की कैद में  ये चाँद और तारे हैं
जरा देखिये गौर से ये अक्स हमारे हैं

भावार्थ
१२/०५/२०१५







Saturday, May 9, 2015

न मस्जिद है न मंदिर है

न मस्जिद है न मंदिर है
जो है तेरे दिल के अंदर है

ओख प्यासे की तू भर 
वो उसके लिए समंदर है

कर सके जो दवा-ए-दर्द
तू  ही सच्चा पैगम्बर है

जीत सके तो दिल को जीत
जो तू असल सिकंदर है

भावार्थ
१०/०५/२०१५



Thursday, May 7, 2015

इन्सां नहीं है ये दर्द का गुब्बारा हैं

तू तो उस समंदर की तरह बहता है
क्यों शहर में फिर तू तनहा रहता है

दर्द तेरा जुबाँ न बया कर पाये
हर अश्क़ तेरी कसक को कहता है

लब तेरे झूठी हंसी लिए  फिरते हैं
काजल गम की स्याही बन बहता है

इन्सां नहीं है ये दर्द का गुब्बारा हैं
जो तन्हाई के धागे से  बंधा रहता है 

जिस्म तो बस जुदाई में तड़पते हैं
दिल है वो शख्श जो मौत को सहता है

तू तो उस समंदर की तरह बहता है
क्यों शहर में फिर तू तनहा सा रहता है


भावार्थ
०७/०५/२०१५






Sunday, May 3, 2015

हैं पत्थर के ये पैगम्बर

है पहेली एक जिंदगी 
जिसे तू बूझता फिरता

भरम है तेरे जेहेन में
जिसे तू सूझता फिरता

हराएगा तुझे वो ही
जिसे तू जीतता फिरता

हैं पत्थर के ये पैगम्बर
जिसे तू पूजता फिरता

खुदा क्या है तू खुद है
जिसे तू ढूढ़ता फिरता

भावार्थ
०३/०५/२०१५