मैं तो हूँ लहरों की तरह
कभी गुम सुम कभी बेबाक
पल पल अंदाज़ बदलता है
कभी दर्द से हो चीख रहा
दरिया यूँ आवाज़ बदलता है
चेहरा हूँ इस दरिया का
मैं तो हूँ लहरों की तरह
कभी कनक तो कभी चांदी
रंग ओढ़ लू मैं उस बादल का
कभी रात की मदहोशी लिए
रंग ओढूँ हवा के आँचल का
हर रंग लिए बेरंग है जो
मैं तो हूँ लहरों की तरह
देख समंदर लगता है मुझे
मैं तो हूँ लहरों की तरह
इश्क़ नहीं हमदम से मुझे
रिश्ता तो फिर भी निभाना है
जाना है रोज उसी साहिल पे
जिस पर जाकर मिट जाना है
जिसमें बने और उसी में मिटे
मैं तो हूँ लहरों की तरह
देख समंदर लगता है मुझे
मैं तो हूँ लहरों की तरह
भावार्थ
१६/ ११/ २०१४
डरबन, साऊथ अफ्रीका
No comments:
Post a Comment