क्या रंग है तेरे जनाजे का
तू देख सही तो जरा उठ कर
जो धरती कभी लहराती थी
वो आज बनी फिरती बंजर
प्यालों से शामें सजती थी जहाँ
अब रात बिछी कालिख बन कर
हर कौने में बसती थी हंसी जहाँ
अब बहता है दर्द हवा बन कर
जो जो थे तुझे दिल से प्यारे
भूल गए सब एक एक कर
तू भी जो कल तक एक हस्ती थी
अब रह गयी एक लम्हा बनकर
क्या रंग है तेरे जनाजे का
तू देख सही तो जरा उठ कर
तू देख सही तो जरा उठ कर
जो धरती कभी लहराती थी
वो आज बनी फिरती बंजर
प्यालों से शामें सजती थी जहाँ
अब रात बिछी कालिख बन कर
हर कौने में बसती थी हंसी जहाँ
अब बहता है दर्द हवा बन कर
जो जो थे तुझे दिल से प्यारे
भूल गए सब एक एक कर
तू भी जो कल तक एक हस्ती थी
अब रह गयी एक लम्हा बनकर
क्या रंग है तेरे जनाजे का
तू देख सही तो जरा उठ कर
भावार्थ
१४/११/२०१४
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