Friday, November 14, 2014

क्या रंग है तेरे जनाजे का

क्या रंग है तेरे जनाजे का
तू देख सही तो जरा उठ कर

जो धरती कभी लहराती थी
वो आज बनी फिरती बंजर

प्यालों से शामें सजती थी जहाँ
अब रात बिछी कालिख बन कर

हर कौने में बसती थी हंसी जहाँ
अब बहता है दर्द हवा बन कर

जो जो थे तुझे दिल से प्यारे
भूल गए सब  एक एक कर

तू भी जो कल तक एक हस्ती थी
अब रह गयी एक लम्हा बनकर

क्या रंग है तेरे जनाजे का
तू देख सही तो जरा उठ कर

भावार्थ 
१४/११/२०१४ 












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